Mohalla
'Mohalla activities & news':
या देवी सर्वभूतेषु विद्या-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
51. President in the National Florence Nightingale awards |
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50. Important personalities in the centenary alumna meet |
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49. President in the centenary alumna meet |
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41. Centenary Alumna Meet Photos - 7 |
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40. Centenary Alumna Meet Photos - 6 |
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39. Centenary Alumna Meet Photos - 5 |
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38. Centenary Alumna Meet Photos - 4 |
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37. Centenary Alumna Meet Photos - 3 |
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36. Centenary Alumna Meet Photos - 2 |
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35. Centenary Alumna Photos - 1 |
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34. Centenary Alumna Meet - 4 |
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33. Centenary Alumna Meet - 3 |
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32. Centenary Alumna Meet - 2 |
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31. Centenary Alumna Meet |
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30. Indraprasth College For Women (Delhi University) |
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29. Meri sunehri yaadein - Part 4 |
7)- समझौता: जीवन में,जीवन से
डॉ कलम श्री विभा सी तैलंग
बेटियाँ खास होती हैं!
बेटियां खास होनी ही चाहिए!
बेटियाँ शक्ति रूप हैं!
उन्हें सशक्त होना चाहिए!
बेटियाँ जीवनदायिनी है !
उन्हें ममतामयी होना चाहिए!
बेटियों को सर्वगुण संपन्न बनाना है!
य़ह दायित्व किसने किसको दिया?
इसकी परिभाषा किसने बनाई?
इसके मापदंड किसने बनाए?
कौन तय करता है समाज की
स्वाभाविक प्रक्रियाओं को?
सामाजिक परिस्थितियों को?
जो हर दस कोस बाद बदली हुई
दिखती हैं खान-पान, रहन-सहन
तौर तरीके,बोली-जुबान में !
किसने चाहा उसकी मन की सुनना,
किसने चाहा उसकी चाहत क्या है?
देश हमारा स्वर्ग सरीखा,
इसका मान बढ़ाना है!
पर अपना और अपनों से प्यारा,
दुनिया में कौन हमारा है?
मान माँ पिता का बढ़ाउ तो,
क्या देश का मान बढ़ता है?
तिरंगे का गुणगान गाउ तो,
परिवार किनारे हो जाता है?
य़ह लिखा जब बच्ची थी
"क्यों बिटिया जन्म निभाना है?"
क्या निभाना शब्द समझौता है?
क्या सहना शब्द समझौता है?
परंपराओं की ओढ़नी से,
सिर ढके घूंघट की आड़ से
तकना समझौता है!?
घर की चक्की झाड़ बुहारी
स्कूल के बस्ते पर हो भारी!
तो मन के चाहना को
सर्वोपरि रखना
क्या य़ह हरकत बगावत है?
या समझौता है?
मन के उमंगों को,
छलांगों को
लक्ष्यों को
महत्वाकांक्षाओं को,
दरकिनार रखना!
मन की ना करना,
मन की ना बोलना
मन की ना खाना,
मन की ना पहनना!
मन मार कर जीना!
और इसे जीने की
आदत मान लेना!
क्या य़ह हरकत पलायन है?
परिस्थितियों से?
बलिदान है औरों के प्रति
अपनों के लिए जीना कहकर
या इसे त्याग मान कर?
या फिर य़ह समझौता है?
पैरों के पायल जब गूँजी,
हाथों की चूडिय़ां जब खनकी,
हँसी की खिलखिलाहट से तंग आयी
"रूठी माँ " को समझाना,
क्या य़ह भी समझौता है?
ऊँची आवाज़ ना देना
य़ह है बिगड़े बोल बगावत के!
किसी की बदतमीजी पर ना लड़े
ना थप्पड़ वापिस मारो,
ना बचाव में शोर करो,
चिल्लम चिल्ली, ना पुलिसगिरी
चुप रह कर नज़रअंदाज़ करो !
कोर्ट, केस, कचहरी के चक्कर से परहेज़,
जेब कटने से बचाएगा,वर्ना
सालों चप्पल घिस कर भी
ना हाथ सोल्यूशन आएगा!
कोर्ट समझौता करवायेंगे,
पूछेंगे बड़ों ने नहीं रोका?
ना समझाया तुम्हें?
एड़ियां रगड़ भी
समझौता ही पल्ले आएगा!
क्या सहनशीलता की क्षमता ही उसे
सर्वगुण संपन्न बनाता है?
क्या समझौता करना
उसको
जीवन में
केवल झुकना ही
सि
खलाता है?
समझौता पसंद की पढ़ाई में!
समझौता पसंद की सगाई में!
समझौता पसंद के कॉलेज
के चुनाव में !
महिला कॉलेज
हो तो सही!
अपना शहर हो तो भला!
समझौता पसंद के शहर में
पसंद के रहन सहन में,
कपड़े आधुनिक माडर्न हों
या पुरातन तालिबानी
मोबाइल,कंप्युटर,स्कूटी,गाड़ी
चलानी आए तो भला
उसके मॉडल के,
कंपनी के चुनाव में
विविधता में समझौता
नौकरी,शादी,स्वयंवर
चुनाव के सफरनामा में
समझौते की परिभाषा को
पारिभाषित कर लें!
एक मापदंड तय कर लें तो
जीना आसान हो जाएगा
पर फिर हर सामाजिक वर्ग
हर क्षेत्र,हर धर्म, हर रुचि
हर प्रदेश व हर देश और
विषय वस्तु की पृष्ठभूमि के अनुसार
व्यवहार की अपेक्षाएं हैं बेटियों से?
जोकि समझौतों की पराकाष्ठाऔ
को भी तय और स्थिर करता है!
जीवन के सफरनामा में,
अगर समझौते की परिभाषा
को तय भी कर लें सोचो
जीना आसान हो जाएगा!
पर फिर भी क्या
बेटों के लिए इसके मापदंड अलग
और बेटियों के लिए अलग ना होंगे?
यहाँ बहुओं की बात तो क्या कहें?
पर आखिर बहू भी,बेटी ही होती है!
उन दामादजी की तरह
घर के जो बेटे समान होते हैं l
हर सामाजिक वर्ग,हर लिंग के
हर वर्ग के हर रुचि के
हर प्रदेश के,देश भर में
विषय वस्तु की पृष्ठभूमि के अनुसार
व्यवहार की अपेक्षाएं हैं बेटियों से?
जोकि समझौतों की पराकाष्ठाऔ
को भी तय करता है!
बेटियों के लिए अलग
बेटों के लिए अलग!
बराबरी का दर्जा तो तब हो
जब हमारी उम्मीदों के दबावों से
बेटियों के स्वाभिमान पर आंच ना आए
और शांति सौहार्दता रिश्तों की भी बनी रहे!
य़ह ठीक ऐसे ही है
जैसे सरकार पेट्रोल, डीजल
की कीमत बढ़ाए,
और देश में सौहार्दता बनी रहे!
डॉ कलम श्री विभा सी तैलंग
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28. Meri sunehri yaadein - Part 3 |
5)-रफ्तार
डॉ कलम श्री विभा सी तैलंग
अब हम जीवन की दौड़ में बहुत तेज दौड़ने लगे हैं
इसीलिए
खिड़की के बाहर
रफ्तार से दौड़ते हुए
पेड़ों इमारतों को पीछे छोड़ते हुए
सूरज को देखना
अब हमारे लिए
कोई मायने नहीं रखता!
6)-हमारी आंखों में ख्वाब है, विषाद भी, पीड़ा भी
इन्द्रप्रस्थ कॉलेज की वो सुबह
मोर की पीयू पीयू से हमेशा की तरह
आज भी नींद खुली
हास्टल के कमरे से बाहर झांका
कुछ मोर-मोरनी पंख फैलाए नाच रहे थे
अद्भुत नजारा था,
गिलहरियों की दौड़ जामुन के पेड़
की टहनियों में लटकी
जामुन के फल को चखने
कुतरने की थी, तो कुछ
हमारी खिड़कियों पर,
मूँगफली की आस में थीं !
हमें ची-ची कह पुकार रही थीं!
हमनें हमेशा की तरह अपनी हथेलियों पर
गुल्लीवर की तरह बिठा कर भोजन कराया!
सुबह सवेरे से हल्की-फुल्की बूंदा बांदी के बाद। आसमान खुल सा गया था,
जमीन और पेड़ पत्ते गिले से थे!
सतरंगी इन्द्रधनुष आसमान को स्वप्निल छटा दे रही थी !
आज 15 अगस्त की सुबह
हर साल की तरह कॉलेज में
प्रिन्सिपल महोदया के झंडातोलन से,
राष्ट्रगान व भाषण से सम्पन्न हुआ !
मैं कुछ मुँह मीठा कर,
हास्टल के टीवी कमरे में बैठ कर
15 अगस्त,
स्वतंत्रता दिवस के ख़बरों को देख कर
मन कुछ उद्विग्न था !
हर वर्ष की तरह
स्वतंत्रता दिवस का
फिर आगमन हुआ था,
लाल किला के प्राचीर से
उम्मीदें जगाई गई
सपने जगाए गए,
हर साल की तरह
कुछ पुराना गिनाया गया
कुछ नया बताया गया
कुछ सच था, कुछ अर्धसत्य था
कुछ कपोल-कल्पना, हमेशा की तरह
जिसे हम हाइpothetical कहते हैं,
यानि सम्भावित बातें,
बड़ी बड़ी सम्भावनाएँ जतायी गई
छोटे-छोटे कदम भी सुझाए गए!
य़ह "नया भारतवाली बात थी',
युवा भारतवालीं,यंग इंडिया,
जवान हिन्दुस्तानवालीं'.....
पर इस घोषणाओं के पिटारे में
महिला, पुरुष,बच्चे,बूढे,
अर्द्धनारी,अर्द्धपुरुष
सबके लिए दिवास्वप्न के जुमले थे!
और फिर मीडिया की paricharchayein,
यूटोपिया की परिभाषा पर विचार-विमर्श
हम सब देख रहे थे टीवी पर!
उगते सूरज की लालिमा
मात्र आँखों को सेंकती ही नहीं
उसकी अरुणिमा ऊर्जा देती है
फिज़ा में हौले-सी बहती,
बयार के स्पर्श का एहसास,
मेरे अंर्तमन को,
तर करता गया!
आज क्या है य़ह रूमानी दस्तक,
जो वक़्त के करवट बदलने का
आगाज-सा लगता है
य़ह पूर्वाभास
मेरी नायिकाओं में
भीगी मिट्टी की
सोंधी खुशबु की भाँति
समाती जा रही हैं,
रोमांचित हो गई हूँ में,
वर्तमान का पल,
कल
इतिहास बन जाए,
सोचती हूँ,
उसे शब्दों और लफ़्ज़ों के
सांचे में ढाल कर
बिखरने से बचा लूँ!
वक़्त,
मुट्ठी में बंद रेत की भाँति
फिसल जाए,
उस से पहले
बदलते हवाओं के
रुख को सम्भाल दूँ!
सोचती हूँ,आज कुछ नया करूँ,
सब को साथ लेकर
"एक नए पहल" का ऐलान कर दूँ,
य़ह ईज़ाद "आज़ादी का ",
दूसरी आज़ादी की लड़ाई का आगाज,
अनूठे और नए अंदाज में
नया भारत,इंडिया,हिंदुस्तान के लिए,
य़ह कन्हैया की आज़ादी नहीं
तमाम बुराइयों के जड़
अशिक्षा से आज़ादी
बेरोजगारी से आज़ादी
कुरीतियों से आज़ादी
अपने आसपास होनेवाली
हर सामाजिक विकारों से आज़ादी
असामाजिक दुराग्रही, आतंकी
अपराधों से आज़ादी
नाकामियों से आज़ादी
उपलब्धियों के अवरोधकों से आज़ादी
गिनती अनगिनत है,
पर बेड़ियों के संग आगे बढ़ने की आज़ादी,
व्यवस्था में सुधार की आज़ादी
इस साल क्या नया आयाम जोड़ सके
आधुनिकीकरण के दौर में
पारंपारिक का परित्याग किए बिना
उसे परिष्कृत कर
आगे बढ़ने की आज़ादी!
ओ ! विषाद की आत्मा,
इस लोक में मानवी आसुओं
का कोई अंत भी है?
अथवा कि उन विशाल आँखों में
अब भी वैसे ही पहाड़ियों
और सूने आकाश झांकते हैं?
उन रहस्यमयी आँखों में क्या था?
अभी वे आँखें क्या देख रहीं हैं??
उलझन, तड़पन,बिलखन,वेदना,
और
इन सब को ढंकती
बेबसी कि वह चादर,
जो नियति का रूप लिए
हमारे समक्ष खड़ी थी!
ये वही नयन जिनमें,
मैं अपने सुख का प्रतिबिंब
देखा करती थी!
उसकी सीमाएं आईने से
कहीं ज्यादा व्यापक थीं!
मुझे आईना नहीं अच्छा लगता,
जोकि सिर्फ सतही प्रतिबिंब
दर्शाता है!
तुम्हारे नयनों में नहीं होती!
ये वही नयन हैं,
जिनमें खुद को में देखा करती थीं!
और खुद से संलग्न सारे सपनों को!
इसीलिए शायद मैं अपने सपनों को
मरने नहीं देना चाहती,
क्योंकि वे तुम्हारी आँखों से देखे थे!
तुम्हारी अभिव्यक्ति के लिए,
तुम्हारे अधर भले ही ना हिले हों,
मगर तुम्हारे नेत्र-ज्योति
के पीछे छिपा,
वह अंधकारयुक्त संसार
मेरी दृष्टिपथ के बाहर नहीं!
उस क्षण होठों की खामोशी में
जो छिप गया था,
वह नयनों की राह बाहर निकल कर
मेरे हृदय मेँ प्रवेश कर गया!
तब से लेकर आज तक,
यानि अभी तक,
कभी नहीं मिली वह रातें
जब मै चैन से सोया करती थीं!
काश!कि तुम भी देख पाते
अपनी उस नयन भंगिमा को
उस में प्रयुक्त अनेकानेक
भावों के जटिल संगम को
जिनको सुलझाने की चाह में
मैं खुद उलझती चली जा रही हूं!
प्रकृति के गोद में बहती
नदियों की भाँति
रंगीन वादियों के स्वर्गनुमा
आगोश में
पर्वतों के पीछे मनोरम पर्वत शिखरों
और उगते सूर्य के तेज के समान
दिव्य भावनाओं
को जागृत करनेवाली
दैवीय शक्तियों
से ऊर्जावान हो
प्रकृति का संरक्षण करते हुए,
प्रकृति के नियमों को धारण कर
उसके सहयोग और उपयोग से
नए उर्जा का निर्माण करें,
अंदरूनी भी,
और बाहरी भी!
वो आज़ादी जिसके हर आगाज
हर कदम की आहट,
अंदर तक दिल को प्रसन्नचित्त करें
और
कोई नया कदम बढ़ाने को प्रेरित भी!
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27. Meri sunehri yaadein - Part 2 |
4)-आतंकवादी गतिविधियों में शहीद हुए घायलों को
समर्पित 1984 से पहले व अब तक
अब कब तक सहेगे??
और अब कब तक सहेगे..??
आतंक के साए में अब और ना जिएंगे!!
य़ह शुरुआत है एक जंग,
हर ग़लत के खिलाफ
जो हाथ मारने को उठे निर्दोष को
वो रोक दिए जाएंगे!!
आतंक मन पर हो या तन पर
अब और ना सहे जाएंगे,
अब और ना सहे जाएंगे
हमारी मनशक्ति भारी पड़ेगी
उन सब हथियारों पर
य़ह आनेवाले हर दिन में
हम साबित कर बताएँगे
हम सिर्फ बातों के धनी
कागज के शेर नहीं
हम अब और ना सहेगे !
आवाज रोज उठाएंगे और
इससे साबित कर बतायेंगे ??
कि पार्लियामेंट हो या देश का कोई भी हिस्सा
अब हम आतंक के काले सांप को
मन पर भी नहीं छाने देंगे!
हम तैयार हैं किसी भी
जांच परख के लिए
पर अब और कब तक सकेंगे ....
अब और कब तक सहेगे ....??
भारत,पाकिस्तान,अफगानिस्तान,
चीन अमरीका..
जो भी हो जवाब चाहिए??
अब आतंक के साए में
और ना जिएंगे,
और ना जिएंगे??
य़ह है शपथ?? य़ह है शपथ??
आंतकवाद, नक्सलवाद,उग्रवाद
चाहे कोई भी वाद हो
उसके "हिंसा " के आग में
शहीद हुए और जो भी उसके शिकार हुए
उन सबको मेरी श्रद्धांजलि
मेरा तहे दिल से सलाम !
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26. Meri sunehri yaadein |
दिल्ली की वो शाम जब मैने अपने पिताजी के साथ दिल्ली रेल्वे प्लेटफॉर्म पर कदम रखा था! बरसात ने दस्तक दे दी थी!दिल्ली को गर्मी से कुछ राहत मिली! स्नातक की पढ़ाई के बाबत जुलाई 1983 में इंद्रप्रस्थ कॉलेज में मेरा दाखिला होना था! मेरे लिए य़ह सौभाग्य की बात थी! कॉलेज के Prospectus में काफी कुछ लिखा था! मन गदगद था!
मैने हिन्दी विशेष विषय में दाखिला लिया! हिन्दी साहित्य में मेरी अभिरुचि थी! हालाँकि मिरांडा कॉलेज में जब भूगोल विषय में दाखिला मिला तो मैं दुविधा में पड़ गई थी क्योंकि तब तक इंद्रप्रस्थ कॉलेज में मुझे हास्टल नहीं मिला था और मेरा नाम प्रतीक्षा सूची में था! कॉलेज प्रिंसिपल श्रीमती शीला उत्तम सिंह के आश्वासन पर मैने इंतजार करने का निर्णय लिया और बतौर डे scholar रोजाना कॉलेज आना जाना शुरू कर दिया!अपने लोकल गार्डियन की बिटिया और बरौनीयन सहेली पूनम के साथ उसके घर एक महीने रही! वो हंसराज कॉलेज में थी तो हमारा आना जाना साथ होता था! दिल्ली विश्वविद्यालय के लिए लेडिज स्पेशल बस तब भी था! बस हमें अपना छात्रः पहचान पत्र दिखाना होता था! महीने भर में मैं ना केवल दिल्ली विश्वविद्यालय के चप्पे-चप्पे से वाकिफ़ हो गई,दिल्ली के बारे में काफी कुछ पढ़ देख कर यहाँ के राह-रग-रग-रूह- नब्ज-धड़कन को समझने लगी थी!
कॉलेज के fresher week's और शरद ऋतु में अपने कॉलेज फेस्टिवल यानी कालेज का अपना वार्षिक उत्सव "श्रुति" के तर्ज़ पर दूसरे कॉलेजों में जैसे IIT के Rendezvous व JNU आदि के अन्य आयोजनों में सम्मिलित भी हुई और पुरस्कृत भी! अगले दिन सुबह नोटिस बोर्ड पर बड़ाई व बधाई के साथ अपना नाम देखने को मिलता तो दिल प्रसन्नचित्त हो जाता! य़ह प्रोत्साहन भविष्य में कुछ और अच्छा करने को प्रेरित करता! य़ह दौर 1983 से 1984 का था !!
अब मैं एक ऐसे कॉलेज की छात्रा थी,जिसका इतिहास खूबसूरत,महत्वपूर्ण,उपलब्धियों से पूर्ण था! 1922 में दिल्ली विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी और दो वर्ष उपरान्त इंद्रप्रस्थ कॉलेज की ,जोकि,तब तक स्कूल था! इंद्रप्रस्थ कन्या हाई स्कूल एंव intermediate कालेज chippiwara में जामा मस्जिद के पीछे चलता था!
1924 में स्थापित इन्द्रप्रस्थ कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय का पहला और सबसे पुराना महिला कॉलेज है!
इसका इतिहास महिला शिक्षा आंदोलन,स्वतंत्रता आंदोलन,नारीवादी आंदोलनों से जुड़ा हुआ है!
इसकी स्थापना 1904 में प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद, theosophist दिवंगत Ani beasant के आह्वान पर कुछ चुनिंदा theosophists ने लाला जुगल किशोर के नेतृत्व में किया था!
1924 में दक्षिण ऑस्ट्रेलिया की निवासी श्रीमती लियोनोरा gmeiner इसकी प्रथम प्रिन्सिपल बनी! बाद में नब्बे की दशक में कुछ वर्षों तक हमारी हिन्दी विभाग की शिक्षिका श्रीमती अरुणा सीतेश प्रिंसिपल रहीं, कुछ वर्षों तक श्रीमती सुषमा पाराशर भी उप प्रधानाध्यापिका रहीं हैं!
आज की तारीख में अलीपुर हाउस, जिसे अब हम सामनाथ मार्ग नाम से जानते हैं,और जो कश्मीरी गेट के नजदीक है,वहीं इन्द्रप्रस्थ महिला कॉलेज अभी भी स्थित है!
1952 में कलावती गुप्ता हास्टल का उद्घाटन हुआ! इसका नाम कॉलेज की द्वितीय प्रिन्सिपल के नाम पर रखा गया है! मैं यहाँ (1983-1986),3 वर्षों तक रहीं! हमारी वार्डन "बहनजी" और उनका डॉगी, हम 156 लड़कियां@तीन वर्षों की छात्राएँ और हास्टल का मेस,वहाँ कार्यरत स्टाफ और कुछ आते जाते मेहमान सब के सब एक परिवार की तरह रहते थे! तभी जब 1984 दिसम्बर में नवभारत टाइम्स के कार्टूनिस्ट श्री सुधीर तैलंगजी से पहली बार मुलाकात हुई! और उनका आना जाना हमारे कॉलेज में, हास्टल के बाहर शुरू हुआ तो उन्होंनेे इसे अपना दूसरा घर घोषित कर दिया! तब वे शालीमार बाग में रहा करते थे! कॉलेज के आयोजन के लिए मैं "टाइम्स ऑफ इंडिया" दफ्तर गई थी! उन्होंने आयोजन के लिए धन राशि व प्रचार सामग्री स्पऑनसर किया था!
मैं बता दूँ इंद्रप्रस्थ कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय का एकमात्र कॉलेज है जो "बैचलर इन "मास मीडिया" एंड "मास कम्यूनिकेशन" (BMMMC)" की डिग्री प्रदान करता है! मैं जब वहाँ पढ़ती थी तब य़ह कोर्स नहीं था,
पर जब बना तो
श्री सुधीर तैलंग जी को कई बार नई छात्राओं से बातचीत के लिए आमंत्रित किया जाता और सुधीर जी उन सबके बीच लोकप्रिय भी थे !वो य़ह कहना कभी नहीं भूलते कि मेरी पत्नी विभा यहाँ पढ़ी हुई है, एक वक़्त य़ह मेरा दूसरा घर हुआ करता था! इसलिए इस कॉलेज से और आप सब से मेरा पुराना नाता है!
मैने जिस वाद विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया था उसकी "चल वैजयंती ट्रॉफी","बैनर व पोस्टर" सुधीर तैलंगजी ने ही डिजाइन किया था!
य़ह वक़्त था जब देश और विशेष कर दिल्ली व पंजाब "खालिस्तानी पंजाब सिख उग्रवाद और उसके विवाद के फलस्वरुप इंदिराजी की हत्या और उसके बाद हुए दंगों के दावानल से गुजरते हुए,उसकी विभीषिकाओं से जुझ रहा था!" इस दौर में जब कर्फ्यू की वज़ह से तमाम कॉलेज बंद थीं,हमारे कॉलेज के नजदीक बगल में ही, सरदारों के टैक्सी स्टैंड पर दंगाइयों के आक्रमण की अफवाहें सुनकर हमने उन्हें अपने हास्टल के पिछवाड़े छुपा कर बचाया था! इससे हम हास्टल में उपस्थित ल़डकियों की जान भी खतरे में पड़ सकती थी पर हमने इसकी परवाह नहीं की!
उन्हीं दिनों भोपाल में गैस त्रासदी के बाद "पर्यावरण बचाओ","हरितक्रांति,"bio-diversity,आदिवासियों, जनजातियों के मानवाधिकारों,बाँध बनाना,निर्माण कार्यों से झुग्गी-बस्तियों को हटा करके,पेड़-पौधे काट करके, कंक्रीट जंगल का निर्माण,ज़मीन को बंजर बनने से बचाओ,चिपको आंदोलन,विश्नोई समाज का आंदोलन इत्यादि संबंधित आंदोलनों ने और ज़ोर पकड़ा!
यहाँ तक कि स्कूल कॉलेजों में भी इसकी पढ़ाई शुरू हो इसकी आवाज पुरज़ोर तौर पर उठाई जाने लगी!मैने और सुधीरजी ने ऐसे कई आयोजनों,आंदोलनों में भाग लिया!सुधीरजी ने अनेकों कार्टून बनाए तो मैने भी कुछ लिखा! climate change,ग्लोबल वार्मिंग जैसे जुमले इसी दौर में प्रचारित हुए!Bio-diversity treaty deal भी sign हुई!
मुझे खुशी है कि इन्द्रप्रस्थ कॉलेज 2014 में दिल्ली विश्वविद्यालय में औपचारिक रूप से पर्यावरण अध्ययन विभाग स्थापित करनेवाला देश का पहला कॉलेज बन गया है,जोकि इसका सबसे नया विभाग है!
दरअसल जुलाई 1984 से 1985 तक कॉलेज की डायमंड जुबली यानी 60 वें वर्ष का आयोजन हुआ जिसमें- मैं बतौर हिन्दी साहित्य सभा की उपसचिव व कॉलेज यूनियन के राइटर्स फोरम की हिन्दी विभाग की अध्यक्ष के रूप में,कॉलेज पत्रिका "आरोह" की हिन्दी संपादिका के रूप में सक्रिय थी! हर वर्ष कॉलेज चुनाव बतौर लोकतांत्रिक तरीके से वोटिंग देकर होता था और फिर एक नयी टीम चुनकर आती थी! हम पदाधिकारियों की भांति,आयोजकों की भाँति और वोटर के रूप में, उसमें शामिल हुए! इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया से दो चार हमें हमारे कालेज ने करवाया!
सन 2009 में, 200 और छात्राओं के लिए कॉलेज परिसर में नया हास्टल बना! अब सब AC कमरे हैं! हमारे वक्त में ऐसा नहीं था!
तो भई! पहले Chippiwar,फिर चंद्रवाली भवन@civil लाइंस से होते हुए हमारे कालेज का सफर 1938 में अलीपुर हाउस तक पहुंचा था जोकि आज भी वहीं स्थित है!
आज़ादी से पूर्व और इंद्रप्रस्थ कॉलेज बनने से पहले अलीपुर हाऊस ब्रिटिश commander-in-cheif का घर व दफ्तर हुआ करता था! जिसे हमनें स्वदेशी स्वरूप एक हद तक दे दिया! यहाँ सभी त्यौहार भी मनाए जाते हैं! सुबह प्रार्थना सभाएँ भी होती हैं,और हाजिरी भी लगती है!
यहाँ की ल़डकियों ने स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लिया जिसके यादों को ताजा रखने के लिए अब एक archieve और museum भी है! यह अकेला कॉलेज है जहाँ शूटिंग रेंज है! NCC की छात्रा होने की वज़ह से मैने यहाँ शूटिंग सीखी! यहाँ का स्विमिंग पूल बाकायदा हास्टल की लड़कियों ने "श्रमदान" देकर निर्मित किया था! मैं अच्छी तैराक भी रही हूँ! मैंने बतौर volunteer-स्वेच्छा से NSS के लिए भी काम किया! 2005 में कॉलेज ने राष्ट्रीय सेवा योजना (NSS) और राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC) के कार्यालयों के साथ साइबर कैफे विंग को भी जोड़ा!
यानी कम्प्यूटिंकरण भी हो गया!
हमारे कालेज की बिल्डिंग को राष्ट्रीय धरोहरों में शामिल कर लिया गया है! य़ह हम सबके लिए गर्व की बात है!
वैसे य़ह भी विडंबना है कि एक तरफ जब आज आतंकवाद के खिलाफ़ लड़ाई लड़ते-लड़ते भारत पाकिस्तान युद्ध करने पर अमादा है,हमारी कॉलेज की ही एक पूर्व छात्रा ने लाहौर जेल में जहाँ तिरंगा फहरा कर हमें गौरवांवित किया था,वहीं पाकिस्तान के पूर्व व प्रथम प्रधानमंत्री की पत्नी (फर्स्ट लेडी)अर्थशास्त्री राणा लियाकत अली खान यहीं शिक्षित हुई हैं!और तो और,1999 में करगिल युद्ध के विलेन और मास्टरमाइंड पाकिस्तान के तत्कालीन सेनाध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत श्री परवेज मुशर्रफ की माताश्री भी हमारे ही कॉलेज से शिक्षित हुई -"पर तब भारत अखंड था-हमारी लड़ाई अंग्रेजों के गुलामी के खिलाफ़ थी!"
इन्द्रप्रस्थ कॉलेज का 100वा साल 2024 जुलाई को पूरा हो कर शुरु हुआ और तभी से आयोजनों की झड़ी लगी है!
इस वर्ष 2025 मई को अब समापन की बेला है!
27 मई 2025,3 बजे दोपहर से सब almunae इकट्ठा होंगे वहाँ! हम बीते दिनों के छात्राओं(alumnae)को याद कर आमंत्रित किया गया है! शाम तक कुछ आयोजन है! सम्भवतः जुलाई 2025 में अंतिम कार्यक्रम होगा!
बस मुझे कुछ यादें लिखकर भेजने को कहा तो मैने भी कुछ पंक्तियाँ लिखनी शुरू कर दीं! इन्हें संग्रहित कर समापन के दौरान एक पुस्तक का रूप देंगे,जिसे कॉलेज की लाइब्रेरी में जगह मिलेगी! कुल 8 या 9 लोगोँ की यादों को सुनकर वीडियो डाक्यूमेंट्री फिल्म भी बना रहें हैं!5 मिनट की बातचीत मेरे से भी हुई! वैसे ये यादें तो कम से कम 3 घंटे की फिल्म में ही समेटी जा सकती है!
अपनी भावनाओं को सटीक शब्दों में पिरो कर प्रस्तुत करना हर मौके पर आसान नहीं! खास कर इस उम्मीद से
कि अपनी बातों को जिस मायने से प्रेषित कर रहे हैं,वो उसी अर्थ में संप्रेषित होंगी और अर्थ का अनर्थ ना होगा!
आज मेरे मन के गीत,अंगुली के पोरों में संगीत बन उतर रहे हैं!
तो चलिए "मन की बात" होठों पर ले ही आएँ,आज वो कविता की पंक्तियाँ उद्धृत करती हूं, जो सालों पहले लिखी थी--
1)- कौन हूँ मैं ??
डॉ कलम श्री विभा सी तैलंग
कौन हूँ मेँ ??
सोचती हूँ में-आज मै कौन हूँ???
पापा की वह बेटी
जो चांद के लिए मचलती थी
मम्मी की बेटी जो रोटी में नक्शे देखती थी
वो बहन जो फ्राक को घाघरा समझकर थिरकती थी
स्कूल की वो शिष्या जो किताबों में से
सरस किस्से ढूँढ निकालती थी????
या वो जो सर और मैडम की शक्लों में
काल्पनिक पात्रों के चेहरे ढूँढती थी????
या आप सब की सहेली,जो आम की
अंबिया तोड़ती,कूदती- फांदती
खेलती, भागती,हंसती-गुनगुनाती
हर पल में एक नए सपने बुनती
कुछ भोली कुछ बुद्धू थोड़ी बदमाश
कुछ धीमी/जीवन की चाहत में हर ओर
सबके शब्दों और चेहरों को उकेरती
वो लड़की जो भारतीयता के जज़्बे
को लिए,दिल्ली पहुंची थी
आज भी मैं चांद,
सूरज में अपना भविष्य देखती हूँ!
नक्शे को रोटी में कैद कर
रोटी को सबको बांट देना चाहती हूँ
इतिहास के पन्ने,आज भी कुछ
सीख और सबक देते हैं !!
पुस्तकों के अक्षर रेंगते से,
भविष्य की लकीरें खींचते हैं !
जीवन की सीढियां गणित के
जोड़-घटाव सरीखे से
गुरुजनों के बोल राह दिखाते है
आप सब करीबियों का ज़ज्बा
संजीवनी औषधि की तरह
यादों में से निकलकर
लाइटहाउस बन जाते हैं
आप सबके जज्बे को नमन
आप सब स्पेशल हैं!
*** डॉ कलम श्री विभा सी तैलंग
..
2)- शायद
डॉ कलम श्री विभा सी तैलंग
यवनिका डाल दे जब समय बरबस
उन क्षणों पर
जो बीते हैं साथ चलते काफिलों में
याद कर लेना
किसी निस्तब्ध रजनी में
विगत की रेत पर
सोए पड़े पदचिन्ह
तब तुमको शायद
जिंदगी का अर्थ दे देंगे!
3)- रिक्तता का दुःख
डॉ कलम श्री विभा सी तैलंग
हर रोज़
देखती थी
पेड़ में लगी डाली को
आज वह नहीं है
और
उसके स्थान पर
एक अपरिमानित शून्य
पसर गया है
वह स्वयं ही
टूटकर गिर गई होगी
पिछली रात
क्योंकि सूखी डाली का टूटना
या पेड़ से लगे रहना
समानार्थी परिस्थितियां हैं
फिर भी, मुझे दुःख है
मैं य़ह जानती हूँ
य़ह दुख
सूखी डाली के टूट जाने का नहीं
बल्कि उस रिक्तता का है
जो किसी की भी शाश्वत
अनुपस्थिति से
निर्मित व उत्पन्न होती है!
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8. महा कुम्भ मेला 2025 |
महा कुम्भ मेला 2025
13 जनवरी से 26 फरवरी तक
वाचडॉग -डॉ कलम श्री विभा सी तैलंग
महाकुंभ का अर्थ शास्त्र
और शोभा की रसोई
मेरी पिछले जन्म में महाकुम्भ में ही बिछुड़ी सहेली शोभा
अचानक चहकती सी चिड़िया की तरह प्रकट होकर 3 और दोस्तों के साथ हमारी अम्मा की रसोई का..लाइव शो करती हुई अपनी यात्रा वृतांत को सोशलमीडिया में डाल कर हमें निहाल कर रही है!
उसकी लगाई वीडियो-तस्वीरें हमारी ज्ञानवृद्धि के लिए लोकेशन मैप तो है ही, सुधीर तैलंग ज़ी की तरह स्केच बुक पकड़ कैरीकैचर स्केच कार्टून्स बनाते तो दृश्य और मनोरम व जीवंत हो जाता!..गाड़ी से...हम दिल्ली से जयपुर होते हुए बीकानेर जाते थे तो आलम कुछ ऐसा ही हुआ करता था!
हमारी खिंची तस्वीरें और कार्टून,स्केच,कैरीकेचर...की आकृतियां, अर्थव्यवस्था को उन्नतिशील बनाने में नागिन के फन की तरह फैल रही सड़कों के विस्तार के जाल को सुलझाती है! गड्ढोंवाली टूटी फूटी सड़कें, जो हर दिन ना जाने कितनों को डसती,अपने लपेटे में ले,उनकी जान को लीलती है! टूटी फूटी स्ट्रीट लाइटवाली हाईवे की सड़कें, जो कई बार लाइट विहीन भी होती हैं! ना जाने कितने सड़क हादसों की वज़ह भी है और गवाह भी!
ध्यान आया बचपन की वो बिहार की सड़कें जिसपर
गाड़ी गुज़रती तो झूले के हिचकोले के आनंद जो टाउनशिप स्पीड ब्रेकर दिलाया करते थे,वहीं मोकामा गंगाघाट को जानेवालीं सड़कें, आंतों को पलटने में-दस्त उल्टी माइग्रेन दिलाने में एक्सपैरी दवाइयों के ओवरडोज सा काम करते,ऐसे की "बी.पी.लो" हो जाए!
हाँ तो! हमारी सखी अम्मा की रसोई वाली शोभा, वही जो पिछले जन्म में महाकुम्भ में बिछुड़ी थी, तमिलनाडु से चली,प्रयागराज में उतरी और आज वापिस अपने गृहप्रदेश पहुंची! वो भी बिल्कुल स्वस्थ व सुरक्षित ,उस नायाब रत्न की तरह जिसे,कितना भी कीचड़ के पानी में डाल कर छोड दो,उसका महत्व कम नहीं होता! ठीक समुद्रमंथन से निकले नवरत्नों की तरह!
कीचड़ का पानी,वही जिसमें कमल खिलता है,और खिला भी 5 फ़रवरी को दिल्ली में!..तभी ना यमुना आरती,यमुना की सफाई की गुहार,चुहल पहल,घोषणाएं और लाइट कैमरा एक्शन सभी शपथ के पहले ही शुरू हो गया!....है ना जी!
पर संगम में गंदे नाले सा पानी ,जिसमें मल-मूत्र का भरमार है, इसमें नहाने से चर्मरोग और आचमन करने से आंत्रशोध हो सकता है, य़ह चेतावनी...मैं नहीं,वो कह रहे हैं- वो पानी जांचवाले सरकारी वैज्ञानिक और उनकी रिपोर्ट कह रही है!
वैसे मनुष्यजनित हादसे यानी भगदड़ में कई मारे गए! कुछ घायल भी हुए! बीमारियों से वहां किसी के मरने या महामारी फैलने जैसी खबरें तो अब तक आयी नहीं! हो सकता है, सरकारी फाइलों में दबा दी गई हो!
तो हमारे पाठकों को बताऊँ,जो उन्हें पहले से पता भी हो...शायद, कि कभी समुद्र मंथन हुआ था क्षीरसागर में, ठीक वैसे ही जैसे यमुना के तट पर विपक्ष आप पार्टी मंथन कर रही है अपने हार की वज़ह जानकर -दोष किस पर डालें! वहीं बीजेपी पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने के लिए मंथन कर रही है, ताकि भविष्य में हार का ठीकरा उसी पर डालेंगे! इस अमृतमंथन में कमल पर बैठी लक्ष्मीजी निकलीं,नवरत्न,नवग्रह,और भी बहुत कुछ निकला ,पर जो अमृतकलश निकला उसे, यानी उस कुम्भ या घड़े को इंद्र पुत्र जयंत राक्षसों से बचा कर ले भागा! उसके पीछे राक्षस भागे,उसे औऱ अमृत कलश को बचाने कुछ देव पुत्र भागे! इस दौरान भागा-भागी में 4 स्थानों पर अमृत के कुछ बूंद छलक गए...हरिद्वार,उज्जैन नासिक और प्रयागराज में!
आज इन सभी 4 जगहों पर कुम्भ का मेला लगता है!
अब जयंत तो हर काल में मिलते हैं, जो अमृत मंथन में लगे राक्षसों और देवों दोनों की मेहनत को हड़प लें!
शोभा की तस्वीरों में विकसित भारत की तस्वीरें हैं,जिसमें लाल और हरी मिर्च की खेती है,पेड़ पौधे हरियाली हैं और साफ सुथरी सड़कें,वीरान पर, सुरक्षित बस स्टॉप और दूसरे स्थान, जहाँ उन्होंने अपना रसोई बनाया,बिल्कुल वनवासी स्त्रियों की तरह,जैसे हमने स्काउट-गाइड के रूप में चंडीगढ़ के जंगलों में चाय बनाई थी! यहाँ मैं "सीता की रसोई" की बात नहीं कर रही! अपनी गाड़ी में चलती फिरती रसोईघर लिए वे 4 लोग साथ-साथ तीर्थ यात्रा कर रहे थे! चारों धर्मशालाओं में रुके! पंडित-पुजारियों,महन्त लोगों से आशीर्वाद ली,उनके पत्नी बच्चों के साथ गपशप करते, नाचते-गाते,सड़कों पर गुनगुनाते-ठुमकते,उनकी शागिर्दगी भी की! उनके घरों में ठहरे! उनके लिए पानी भी भरे!उनके बाग में लगी तार के जालियों में अटकी फली की सब्जियां तुड़वा कर- कटोरे भर मांग कर,बौद्ध भिक्षुओं की तरह सब्ज़ी काटकर बनाई! और तो और,संतरे से भरे ट्रकवाले को रोक कर, दबंगों की भांति "रंगदारी टैक्स" में, अपने हाथों में संतरे लेकर , आँचल में और थैलों में मुफ्त में भर कर -संतरे वसूले!
रास्ते में वे कई प्रदेशों से गुज़रते हुए वहाँ की झांकियां दिखाते गए! हमारी यात्रा सीमित थी उनके नजरिए और तस्वीरों तक!हम वही देख रहे थे जो उन्होंने हमें दिखाया!
उसके साथ फुट नोट लिख कर जानकारियां दीं! वे 4 लोगों ने रुक रुक कर वहां के मंदिरों में अपनी आस्था की अभिव्यक्ति की! पूजा अर्चना और तस्वीरों के खींचने के साथ,उस पल को यादगार बनाया! हमने उन तस्वीरों के माध्यम से, उसकी आंखों से,उसी के साथ भ्रमण किया! तस्वीरें, वीडियो बनाने वाले की झलक कभी-कभी दिखी!तीनों सहेलियां ही छाई रहीं! "थ्री मस्कीटीर्स" की तरह हमारी Cinderella's. सीनड्रिलाऔ ने पोज देकर मॉडल बन तस्वीरें खिंचवाने का शौक व मन का भड़ास भी निकाल लिया!
तो य़ह है कुम्भ का अर्थशास्त्र! संक्षिप्त में कहें तो य़ह मेला एक मौका है व्यापार का, जहाँ हर व्यवस्था सरकारी तंत्र संभालती है, उनकी अपनी मशीनरी और प्रोटोकोल है!सम्भवत सबने अपना दायित्व सही से ही निभाया होगा!अभी अंतिम 4 दिन है! शिवरात्रि के बाद लेखा-जोखा आएगा,क्यों भगदड़ मची और कहाँ और सुचारू व्यवस्था होनी थी!
पर मितव्ययी होकर साफ़ सुथरे अंदाज में देश भ्रमण और तीर्थयात्रा कर ,सुरक्षित लौट कर घर आना! इतने कम खर्च में अपने इच्छाओं को जमीनी हक़ीक़त बनाना, य़ह भी खास बात है!
वर्ना तीर्थों में जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी विधि विधान बिकते हैं!पंडा,मौलवियों,पंडितों,मुल्लाओं के हाथ हर कार्यों,हर व्यवस्थाओं के हल के लिए उपाय है! बस आपके पास धन दान की क्षमता होनी चाहिए! घूस खाना- खिलाना मुश्किल नहीं! फिर चाहे वो रहने ठहरने की व्यवस्था हो, गाड़ी,वाहन,खरीदारी की व्यवस्था हो या पूजा पाठ की,VIP हों या ना हों, पैसा बोलता है!
जितना बड़ा अवसर हो, जितना बड़ा मेला...बस पैसों का ही होता है खेला!
सुना ना उस नीम के दातुन बेचने वाले का किस्सा!अपनी प्रेमिका की सलाह मानकर, महाकुंभ में ही वेलेंटाइन डे मनाने की ठानी!13 जनवरी से 26 फरवरी तक वहीं रह कर पहली बार नीम का दतमन बेचने बैठा और आज अभी ही करोड़पति है,या ना मानो तो, लखपति हुआ होगा, खैर! टैक्स तो उसे ही भरना है!
अब बताओ मार्केटिंग भी एक कला है या नहीं! बस क्या बेचना है, इसकी सोच और हिम्मत होनी चाहिए!
पर मेरी पिछले जन्म में कुम्भ मेला में बिछुड़ी मेरी मित्र शोभा,जोकि पेशे से शिक्षक रही है,उसने य़ह कर के बताया! आप मध्यम वर्ग के हैं,या उच्चवर्ग के,बचत के साथ ,मस्ती के साथ ,नैसर्गिक- प्राकृतिक मौसम का मज़ा अपनी गाड़ी में लेते हुए! अपनी सुविधा से, रेल्वे के भीड़ भाड़ से बचते हुए,साफ सुथरी भोजन करते हुए, तीर्थयात्रा या घुमक्कड़ी कर सकते हैं!
महाकुंभ के अर्थ शास्त्र को समझ सकते हैं!
डॉ कलम श्री विभा सी तैलंग
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7. Honoured by VHP for having Divya Snan at Mahakumbh Prayagraj |
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6. Teaching skill is essential for livelihood development |
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5. Dr. Rajendra Lal Baraunian |
[25/9, 10:27] Dr. Rajendra LAL: dear friends--with your blessings, we are getting union Finance ministers award 2022 for Tax Deduction at source work done when i was Commissioner TDS. hyderabad...a small humble recognition of my contribution to honour of national budget in my tenure as i broke all records for tax collection for andhra pradesh and telengana region this is among many entries received at national level
[25/9, 10:31] +255 785 032 970: Wow...congratulations Rajendra ..well done...though you must have given so much nightmares to many evaders.
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2. Another Guinnese record. Received today. |
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